क्रिप्टोकरेंसी बाजार

एक दलाल का वेतन क्या है?

एक दलाल का वेतन क्या है?
कॉपीराइट 2014, वाणिज्य विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के साथ आरक्षित सभी अधिकार

ग्राहक-पॉलिसी व बीमा क्‍लेम पर दलाल वकीलों की सौदेबाजी

जौनपुर : बीमा कंपनियां आमतौर पर लोगों की भलाई के लिए काम करती हैं। दुर्घटना या अन्य विपदा के समय यह बीमा लेने वाले लोगों की मदद करती है। बीमा कंपनियां अपनी तरफ से वकील रखती हैं । यह वकील मामले की निष्पक्षता पूर्वक मुआवजा दिला कर न्याय दिलाने का काम करते हैं। लेकिन हकीकत तो यही है कि बीमा कंपनियों को चूना लगा रहे उसके ही अपने वकील। और हैरत की बात है कि इन वकीलों की करतूतों का खुलासा उनके खुद के हमपेशा वकीलों ने ही किया है।
ताजा मामला है जौनपुर का। लेकिन तस्‍वीर तो पूरे बीमा क्षेत्र की बनती जा रही है। ऐसी हालत में कुछ वकील ऐसे भी हैं ,जो याचिका दाखिल करने वाले वकील से समझौता कर मोटी रकम वसूल कर रहे हैं। बीमा कंपनियों से प्राप्त वेतन के साथ साथ दोहरी कमाई करने वाले वकील जहां एक तरफ अपनी तिजोरी भर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बीमा कंपनियों की भी लुटिया डुबो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के मतापुर स्थित मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसमें बीमा कंपनी के वकील और याचिका दायर करने वाले वकील के बीच सौदाबाजी चल रही है। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि इस दलाली की बातचीत को इन वकीलों के पास खडे़ एक अन्‍य वकील ने चुपचाप रिकार्ड कर लिया। इस ऑडियो में एक वकील दूसरे से साफ-साफ मोटी रकम मांग रहा है ताकि उसका क्‍लेम जल्‍दी निपट जाए। अन्‍यथा अड़ंगा भी लग जाएगा।
ऑडियो रिकॉर्डिंग वायरल हो जाने के बाद लोग आश्चर्यचकित हैं। ऑडियो रिकॉर्डिंग से स्पष्ट है कि बीमा कंपनी का वकील बहस के लिए याचिकाकर्ता के वकील से 20 हजार रुपए की मांग कर रहा है। बीमा कंपनी के पक्ष में नियुक्त वकील विरोधी पक्षकार के वकील से रुपए मांग कर बीमा कंपनी को ही लाखों करोड़ों का चूना लगा रहा है। यह खेल काफी समय से चल रहा है।इसके अलावा तमाम ऐसे मामलों में जिसमें गाड़ी एक्सीडेंट करके भाग जाती है,पुलिस, मृतक के परिवार वाले मिलकर बीमा की गई गाड़ी लगाते हैं। कोर्ट में बीमा कंपनी के अधिवक्ता याचिकाकर्ता या याचिकाकर्ताओं से मिलकर उनसे रुपए लेकर बीमा कंपनी को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। इसी लिए हाई कोर्ट द्वारा एसआईटी का भी गठन हुआ है। एसआईटी भी केवल याचिकाकर्ता और मोटर मालिक के खिलाफ कार्यवाही करती है जबकि असली खेल बीमा कंपनी के ही वकील रुपए लेकर खेलते हैं।

एक दलाल का वेतन क्या है?

  • लिंक पाएं
  • Facebook
  • Twitter
  • Pinterest
  • ईमेल
  • दूसरे ऐप

जौनपुर। भ्रष्टाचार और दलाली को लेकर सुर्खियों में रहने वाले एआरटीओ कार्यालय पर जिलाधिकारी के छापे के बाद हड़कंप मच गया है। आज डीएम मनीष कुमार वर्मा सहायक सम्भागीय परिवहन कार्यालय पर धमक पड़े। जहां हर पटल पर बारीकी से निरीक्षण किया वही लाइसेंस बनवाने लिए आये अभ्यार्थियों से बातचीत भी किया। एक अभ्यार्थी ने बताया कि उसका लाइसेंस बनवाने के लिए एक बिचैलियें साढ़े तीन सौ की जगह 36 सौ रूपये लिया है। इतना सुनते ही डीएम के तेवर तल्ख हो गये। उन्होने तत्काल उस बिचैलिये को चिन्हित करके उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया। निरीक्षण में सरकार के एक मंत्री का चहेता कर्मचारी भी नदारत मिलने पर उसका एक दिन का वेतन काटने का आदेश दिया। डीएम के तेवर से विभागीय अधिकारी, कर्मचारी और दलालों में हड़कंप मच गया है।

सब कार्य के लिए रेट चार्ट अलग अलग

NPS to OPS के जो कार्य कार्यालय को करना है अब कर्मी अपने काम छोड़कर कार्यालय के चक्कर लगाने में व्यस्त हैं। जिसकी विभागीय पदाधिकारी को कोई चिंता नहीं। प्राप्त जानकारी के अनुसार कर्मियों को सिर्फ एक बार अपने कार्यालय में उपस्थित होना पड़ता है जिसमें हस्ताक्षर और एफिडेफिट कार्य शामिल है। परंतु कभी झार नेट का हवाला तो कभी कार्यालय की व्यवस्था दिखाकर जानबूझकर कर्मचारियों को चक्कर लगाने पर मजबूर किया जाता है ताकि कर्मचारी सुविधा शुल्क देने को तैयार हो जाए।

सबसे मजेदार बात यह है कि कार्यालय के सरकारी दलालों ने अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग रेट चार्ट तय कर रखे हैं।

शपथ पत्र और नॉमिनेशन 500.00

शपथ पत्र एफिडेफिट 200.00 से 500.00

ऑनलाइन अपलोडिंग 500.00 (डीडीओ हस्ताक्षर)

जीपीएफ ऑफिस खर्चा 500.00 से 1000.00

कर्मी अपने इच्छानुसार अलग अलग कार्य करा सकते हैं या फिर सरकारी दलालों ने एक पैकेज भी बना रखा है जिसकी दर 1000 से 2000 के बीच रखी एक दलाल का वेतन क्या है? गई है। इस पैकेज के तहत दलाल एक मुश्त पैसे लेकर जीपीएफ no आवंटित कराने की जिम्मेवारी लेते हैं। और उन कर्मी को क्रैक सेवा के तहत जीपीएफ no निर्गत कराए एक दलाल का वेतन क्या है? जाने की भी सुविधा उपलब्ध है।

जीपीएफ कार्यालय में भी चल रहा पैसे का खेल

2004 के बाद नई पेंशन योजना के तहत बहाल कर्मियों के लिए जीपीएफ ऑफिस कोई महत्व नहीं रखता था। परंतु पुरानी पेंशन योजना बहाल होने से जीपीएफ ऑफिस में इस समय उत्सव जैसा माहौल है। सभी विभागों के लिए आवंटित अलग-अलग बाबू की अपनी-अपनी चांदी चल रही है। सुविधा शुल्क देकर तुरंत जीपीएफ नंबर अलॉट करने का काम बदस्तूर जारी है।

संबंधित विभागीय पदाधिकारी इस ओर एक दलाल का वेतन क्या है? ध्यान नहीं दे रहे हैं। विभागीय पदाधिकारी के नाक के नीचे इस तरह के अनैतिक कार्य की अनदेखी करना समझ से परे है। क्योंकि किसी भी विभाग से ऑनलाइन आवेदन अपलोड करने के बाद उसमें टाइम और तिथि दोनों दर्ज हो जाती है। परंतु फॉर्म अपलोड करने के क्रम के हिसाब से जीपीएफ अकाउंट अलॉट नही किया जा रहा। जो काम पहले पाओ की तर्ज पर होना चाहिए, वो काम पैसे दो अकाउंट no लो की तर्ज पर किया जा रहा है।

NMOPS के पदाधिकारी रखे हैं पैनी नजर – प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत कुमार सिंह

NMOPS के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत कुमार सिंह का कहना है की पैसे की लेनदेन की एक दलाल का वेतन क्या है? शिकायत कई जिलों के कार्यालय से आ रही है, साथ ही पैसे के लेन देन के लिए मोटिवेट किया जा रहा है। जिस पर हमारी टीम की पैनी नजर है। कई कार्यालय के कर्मी और पदाधिकारी की शिकायत, कॉल रिकॉर्डिंग संगठन तक पहुंच चुकी है। जो भी कर्मी और पदाधिकारी भयादोहन कर भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाए जाएंगे उनकी शिकायत सीधे तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय, वित्त विभाग और भविष्य निधि निदेशालय में की जायेगी।

गोड्डा जिला के कोषागार पदाधिकारी सह जिला भविष्य निधि पदाधिकारी उमेश चंद्र दास जो स्वयं NPS से OPS के रास्ते पर हैं, का कहना है मैने कार्यालय स्तर से जीपीएफ अकाउंट no देने में देरी नहीं करने,और पैसे के लेन देन नहीं करने की सख्त हिदायत दे रखी है। प्रतिदिन मॉनिटरिंग मेरे द्वारा किया जाता है। कुछ फॉर्म में त्रुटियों के कारण विलंब हो रही हैं।

भारत सरकार

89_azad

चाय अधिनियम 1953 की धारा (4) के अनुसार 1 अप्रैल, 1954 को एक सांविधिक निकाय के रूप में चाय बोर्ड की स्थापना की गई थी। शीर्ष निकाय के रूप में, यह चाय उद्योग के समग्र विकास का ध्यान रखता है। बोर्ड के अध्यक्ष तक एक अध्यक्ष द्वारा की जाती है और इसमें भारत सरकार द्वारा नियुक्त 30 सदस्य होते हैं जो कि चाय एक दलाल का वेतन क्या है? उद्योग के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बोर्ड का प्रधान कार्यालय कोलकाता में स्थित है और दो क्षेत्रीय कार्यालय उत्तर-पूर्व क्षेत्र में असम के जोरहाट में और तमिलनाडु में कुन्नूर में एक दलाल का वेतन क्या है? दक्षिण क्षेत्र में है। इसके अलावा, सभी प्रमुख चाय उत्पादक राज्यों और चार महानगरों में 18 क्षेत्रीय कार्यालय फैले हुए हैं। चाय के प्रचार के उद्देश्य से, तीन विदेशी कार्यालय लंदन, दुबई और मास्को में स्थित है। छोटे क्षेत्र की विकासात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए जिसमें राष्ट्रीय चाय उत्पादन का एक तिहाई से अधिक हिस्सा होता है, रिपोर्ट के तहत वर्ष के दौरान अलग निदेशालय की स्थापना की गई है। इस निदेशालय के तहत सभी क्षेत्रों में 71 उप क्षेत्रीय कार्यालय खोले गए हैं जहां छोटे उत्पादकों को उत्पादकों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने और छोटे क्षेत्र से उत्पादित चाय की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में उत्पादकों को विकास और विस्तार सेवाएं प्रदान करने के लिए केंद्रित किया गया है। चाय बोर्ड के कार्यों और जिम्मेदारियों में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना, चाय की गुणवत्ता में सुधार लाना, बाजार संवर्धन और बागान श्रमिकों के लिए कल्याणकारी उपाय और अनुसंधान और विकास का समर्थन करना शामिल है। सभी हित धारकों के लिए सांख्यिकी जानकारी का संग्रह, एकत्रीकरण और प्रसार अभी तक बोर्ड का एक और महत्वपूर्ण कार्य है। नियामक निकाय होने के नाते, बोर्ड उत्पाद अधिनियम के तहत अधिसूचित विभिन्न नियंत्रण आदेशों के माध्यम से उत्पादकों, निर्माताओं, निर्यातकों, निर्यातकों, चाय दलालों, नीलामी आयोजकों और गोदाम के रखवालों पर पर नियंत्रण रखता है।

नेता-अमीर-मालिक-दलाल सबके भीतर एक भिखारी रहता है !


THOUGHTS_1 H x

लाेनावला रेलवे स्टेशन पर बाहर टिकट घर का परिसर.. बात कुछ पुरानी है. मगर जरूरी है.. बाहर बारिश हाे रही थी.. यात्रियाें के अलावा भी कई लाेग थे.. उनमें से चारपांच बड़े भिखारी थे.. कुछ बच्चे भी थे. तभी एक बुड्ढी के बाल वह जाे श्नकर से बनाया जाता है. वह बेचने वाला आया. उसका सारा माल करीब-करीब वैसा ही था. समय था करीब साढ़े छह.. सात बजे शाम का अंधेरा हाे रहा था. रेलवे स्टेशन के उस टिकट घर में ट्यूबलाइट्स जले हाेने से अच्छी राेशनी एक दलाल का वेतन क्या है? थी.. वे भिखारी शायद दिन भर भीख मांगते व शाम काे वहां एकत्र हाेते.. ऐसा बाताें से लग रहा था.. दिन भर कहां-कहां भीख मांगी.. क्या -्नया मिला.. लाेगाें का व्यवहार कैसा रहा? यह सब वे जाे आपस में बता रहे थे, उससे लग रहा था, कि यदि इंसान की असलियत जानना हाे ताे भिखारियाें से उनके व्यवहार के बारे में जानना चाहिए.

रेटिंग: 4.70
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 105
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *