एक विस्तृत ट्रेडिंग ट्यूटोरियल

बीमा ब्रोकर का नाम क्या होना चाहिए

बीमा ब्रोकर का नाम क्या होना चाहिए

Income Tax: इन 5 कैश ट्रांजैक्शन पर मिल सकता है इनकम टैक्स का नोटिस, जानिए क्या है पूरा नियम

Income Tax: इनकम टैक्स की नजर ऐसे बड़े ट्रांजेक्शन पर रहती है जो एक तय लिमिट से ज्यादा हो रहे हों, लिहाजा ऐसे ट्रांजेक्शन से बचना चाहिए

Income Tax: इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (Income tax department) इन दिनों कैश ट्रांजैक्शन को लेकर काफी सतर्क हो गया है। पिछले कुछ दिनों से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, बैंकों, म्यूचुअल फंड हाउस, ब्रोकर प्लेटफॉर्म जैसे कई प्लेटफॉर्मों ने आम जनता के कैश ट्रांजैक्श को लेकर नियमों में कड़ाई कर दी बीमा ब्रोकर का नाम क्या होना चाहिए है। इस सब ने कैश ट्रांजैक्शन के लिए एक लिमिट लगा दी है। थोड़ा भी आपने नियमों का पालन नहीं किया तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आपको नोटिस थमा सकता है।

इसके अलावा अगर कोई शेयर बाजार का निवेशक है और वो कैश का उपयोग करके डिमांड ड्राफ्ट के जरिए निवेश करता है, तो ब्रोकर अपनी बैलेंस शीट में इसकी रिपोर्ट करेगा। यहां हम आपको बताएंगे उन 5 ट्रांजैक्शन के बारे में, जिनके कारण आपको आयकर का नोटिस आ सकता है।

आवरण कथाः दरवाजे निवेश के और ज्यादा खोले गए

बीमा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की सीमा बढ़ाना बीमा ब्रोकर का नाम क्या होना चाहिए कंपनियों और खरीदारों दोनों के लिए फायदेमंद होगा. लेकिन विदेशी हिस्सेदार कारोबार में ज्यादा दखल की मांग करेंगे

निवेश के दरवाजे

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2021,
  • (अपडेटेड 18 मार्च 2021, 10:35 PM IST)

मोदी सरकार जीवन बीमा निगम (एलआइसी) में अपनी हिस्सेदारी बेचने को शुद्ध रूप से वित्तीय उपाय के तौर पर नहीं देख रही है. उसने बजट 2021 में बीमा क्षेत्र में दूरगामी सुधारों का भी ऐलान किया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घरेलू बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) मौजूदा 49 फीसद से बढ़ाकर 74 फीसद करने का प्रस्ताव रखा. इस कदम से और ज्यादा पूंजी को आकर्षित किया जा सकेगा और बीमा कंपनियां पर्याप्त सॉल्वेंसी मार्जिन बनाए रख सकेंगी और साथ ही टेक्नोलॉजी तथा वे उत्पादों में नयापन बीमा ब्रोकर का नाम क्या होना चाहिए लाने में निवेश कर सकेंगी.

सरकार पांच साधारण बीमा कंपनियों में से भी एक को निजी हाथों में सौंपने की योजना बना रही है. केंद्र ने कहा है कि (नए एफडीआइ नियमों के तहत) कंपनी बोर्ड में 50 फीसद स्वतंत्र डायरेक्टर होंगे और सभी प्रमुख व्यक्ति भारतीय होंगे. बीमा संयुक्त उद्यम (जेवी) के मुनाफों का एक निश्चित प्रतिशत सामान्य आरक्षित निधि के तौर पर रखा जाएगा.

मौजूदा 70 से ज्यादा बीमा फर्म में से 35 ने पहले ही विदेशी कंपनियों के साथ जेवी पर दस्तखत किए हैं. विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय बीमा कंपनियों की पैठ अब भी कम है और इसलिए एफडीआइ की सीमा बढ़ाना लाजिमी ही है, जिससे ग्राहकों को कम लागत पर बेहतर उत्पाद मिलेंगे और बीमा की पैठ बढ़ेगी, जिसमें 2019 में 2.82 फीसद का इजाफा हुआ था.

फिच रेटिंग्स का कहना है कि केंद्र के इस कदम से मध्यम वक्त में विलय और खरीद (एमऐंडए) की गतिविधियों में बढ़ोतरी होगी. सरकार ने पिछले साल एजेंट, ब्रोकर, लॉस एसेसर और सर्वेयर सहित बीमा मध्यस्थ कंपनियों में पूर्ण विदेशी मिल्कियत की इजाजत दे दी थी (जो पहले 49 फीसद थी).

जब एफडीआइ की सीमा 49 फीसद तक बढ़ाई गई थी, कई विदेशी कंपनियों ने भारतीय बीमा उद्यमों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा दी थी. इनमें निप्पन लाइफ (रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस के साथ संयुक्त उद्यम में भागीदार), टोकियो मैरीन (एडलवाइस टोकियो लाइफ) और जापान की दाई-इची (स्टार यूनियन दाई-इची लाइफ) शामिल थीं. इसके बावजूद अब भी बहुत सारी भारतीय बीमा कंपनियां हैं जिनमें विदेशी भागीदारों की हिस्सेदारी 26 फीसद या उससे भी कम है.

साइरिल अमरचंद मंगलदास फर्म में पार्टनर इंद्रनाथ बिष्णु कहते हैं, ''फोकस अब इस बात पर है कि सरकार और बीमा नियामक कितनी जल्दी संशोधित रूपरेखा का ऐलान करते हैं. हम निदेशकों की राष्ट्रीयता और निवास स्थान और कुछ निश्चित केएमपी (एल्गोरिद्म)-रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन, और शायद लाभांश अपने देश भेजने को लेकर भी, पाबंदियों का अनुमान कर रहे हैं.’’

नए खिलाड़ी आ सकते हैं और कुछ शेयरधारक हिस्सेदारी में बदलाव की तरफ जा सकते हैं. पीडब्ल्यूसी के जॉयदीप रॉय कहते हैं कि 74 फीसद हिस्सेदारी और प्रबंधकीय नियंत्रण के साथ कई दूसरे नियम-कायदों को भी बदलना पड़ेगा, मसलन वे नियम-कायदे जो निजी अंशपूंजी (पीई) पुनर्निवेश, एकाउंटिंग और पूंजी और जोखिम से जुड़े हैं, तभी ये संयुक्त उद्यम 50 फीसद से ज्यादा शेयरहोल्डिंग के साथ वित्तीय लेखा-जोखा अपनी वैश्विक लेखा पुस्तिकाओं में चढ़ा पाएंगे.

खेतान लीगल एसोसिएट्स के पार्टनर साकेत खेतान कहते हैं कि विदेशी भागीदार को धन के निवेश के लिए प्रोत्साहन देते वक्त नियामक को भारतीय नियंत्रण के साथ संतुलन बनाने की जरूरत होगी. वे यह भी कहते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता कि वे धन का निवेश करें और जोखिम उठाएं लेकिन कारोबार चलाने में उनकी बात का कोई वजन न हो.

दुनिया के कुल बीमा कारोबार में भारत की महज 2.6 फीसद हिस्सेदारी है और इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में वृद्धि की अपार संभावनाएं है. दोहन नहीं किए गए बाजार के साथ-साथ युवा आबादी, बढ़ता कामकाजी आयु समूह, आमदनी के बढ़ते स्तर, बीमा को लेकर बढ़ती जागरूकता और निर्भरता अनुपात में अपेक्षित बढ़ोतरी सरीखे कारकों को देखते हुए इस क्षेत्र में तेज वृद्धि की खासी उम्मीद है. बीते दशक में भारतीय बीमा उद्योग अच्छा-खासा बढ़ा है लेकिन अभी और भी ज्यादा वृद्धि की गुंजाइश है.

साल 2009 और 2011 के बीच बीमा उद्योग 12 फीसद से ज्यादा सीएजीआर से बढ़ा है. रॉय कहते हैं कि जीवन और गैर-जीवन बीमा में यह वृद्धि दर 20 साल के वक्त में शायद दुनिया की सबसे तेज सतत वृद्धि दर है. यह वित्तीय समावेशन के मामले में सरकार की उन लगातार कोशिशों की बदौलत भी हुआ है, जिनके नतीजतन तकरीबन 40 करोड़ जन धन खाते खोले गए और जिन्हें किसी न किसी रूप में बीमा कवर हासिल है.

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के 6 करोड़ से ज्यादा और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के 16 करोड़ लाभार्थी हैं (इन आंकड़ों में कई साझा नाम शामिल हो सकते हैं). इसका मतलब है कि अगर भारत की बीमा योग्य आबादी के करीब 75 करोड़ होने के अनुमान को मान लिया जाए तो इसकी अच्छी-खासी आबादी को किसी न किसी रूप में बीमा कवर हासिल है.

परिवारों की शुद्ध वित्तीय परिसंपत्तियों में इजाफा जीवन बीमा फर्मों के लिए एक मौका है (2019-20 में यह जीडीपी के 7.7 फीसद पर पहुंच गया). आरबीआइ के जून 2020 के बुलेटिन के मुताबिक, मार्च 2020 में तकरीबन 66 फीसद वित्तीय परिसंपत्तियां और देयताएं मुद्रा और जमा धनराशियों में लगी थीं जबकि 23.2 फीसद जीवन बीमा निधियों को दी गई थीं. वित्तीय परिसंपत्तियों के ज्यादा बड़े हिस्से का जमाराशियों और मुद्रा में होना बीमा कंपनियों के लिए चुनौती के साथ-साथ मौका भी है.

वित्तीय परिसं‌त्तियों की बचत के इस बड़े हिस्से पर उनकी नजरें टिकी हैं. बीमे से हमेशा होड़ करते म्युचुअल फंडों से लोगों को हाल ही में इस क्षेत्र के सामने आए तरलता संकट और कोविड से जुड़ी अनिश्चितताओं के चलते जोखिम से परहेज बरतने के कारण पैसा निकालते देखा गया.

एचडीएफसी के मैनेजिंग डायरेक्टर और वाइस चेयरमैन केकी मिस्त्री कहते हैं कि बदलती जनसांख्यिकी, जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी और सामाजिक सुरक्षा के अभाव को देखते हुए उन्हें अवकाश ग्रहण से जुड़े कारोबारों में वृद्धि की तेज संभावना नजर आती है. यही नहीं, भारत की बुजुर्ग आबादी, जिसके 2015 में 7.8 करोड़ होने का अनुमान था, 2035 तक दुगुनी और 2050 तक तिगुनी हो जाएगी. बीमा बाजार के मौजूदा सुधारों को नौकरियों और भारतीय अर्थव्यवस्था दोनों को सहारा देने के लिए इस विशाल संभावना का फायदा उठाना चाहिए.

भारतीय जीवन बीमा निगम का ट्रैक रिकॉर्ड विश्वसनीयता से भरा हुआ है जो इसके कस्टमर को बेफिक्र बनाता है. निवेश के रिटर्न से ज्यादा सुरक्षित निवेश के रूप में भी एलआइसी की पॉलिसी को गिना जाता है. लिहाजा एलआइसी का आइपीओ आता है तो ये सद्भावना भी उसे फायदा पहुंचाएगी.

विश्व के कुल बीमा कारोबार में भारत की महज 2.6 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जाहिर है कि इसमें वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं

झटका: जुलाई तक नई फंड योजनाओं के लॉन्च पर रोक, जानिए क्या है पूरा मामला

एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एंफी) को भेजे पत्र में सेबी ने कहा कि जब तक यह मामला नहीं सुलझता है, तब तक नई योजनाओं को लॉन्च करने पर पाबंदी रहेगी।

SEBI

सेबी ने म्यूचुअल फंड हाउसों को झटका देते हुए एक जुलाई तक नई योजनाएं लॉन्च करने पर रोक लगा दी है। इसका कारण यह है कि निवेशक अगर किसी भी तीसरी पार्टी यानी वितरकों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या स्टॉक ब्रोकर के जरिये निवेश करते हैं तो यह पैसा सीधे फंड हाउसों के खाते में जाना चाहिए, न कि इन लोगों के खातों में।

एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एंफी) को भेजे पत्र में सेबी ने कहा कि जब तक यह मामला नहीं सुलझता है, तब तक नई योजनाओं को लॉन्च करने पर पाबंदी रहेगी।

केवल फंड हाउस के नाम से ही चेक लिया जाएगा
म्यूचुअल फंड वितरक केवल फंड हाउस के नाम से ही चेक या या ऑटो डेबिट के लिए निवेशक की मंजूरी ले सकता है। यूनिट बेचते समय दो बार इसे सुनिश्चित करना होगा कि सही निवेशक ही अपनी यूनिट बेच रहा है।

nएक अप्रैल से लागू होना था नियम
सेबी ने यह भी निर्देश दिया था कि इस नियम को एक अप्रैल, 2022 से लागू किया जाए। हालांकि पिछले महीने ही एंफी ने सेबी से अपील की थी कि इसके लिए थोड़ा और समय दिया जाए, क्योंकि नई व्यवस्था को अपनाने के लिए अभी पूरी तैयारी नहीं है।

सेबी ने इस अपील को मानते हुए कहा कि एक जुलाई से इसे लागू किया जाए। इसके साथ ही एम्फी को भेजे गए पत्र में सेबी ने कहा कि अक्तूबर, 2021 से इसके लिए काफी समय दिया जा चुका है।

विस्तार

सेबी ने म्यूचुअल फंड हाउसों को झटका देते हुए एक जुलाई तक नई योजनाएं लॉन्च करने पर रोक लगा दी है। इसका कारण यह है कि निवेशक अगर किसी भी तीसरी पार्टी यानी वितरकों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या स्टॉक ब्रोकर के जरिये निवेश करते हैं तो यह पैसा सीधे फंड हाउसों के खाते में जाना चाहिए, न कि इन लोगों के खातों में।

एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एंफी) को भेजे पत्र में सेबी ने कहा कि जब तक यह मामला नहीं सुलझता है, तब तक नई योजनाओं को लॉन्च करने पर पाबंदी रहेगी।

केवल फंड हाउस के नाम से ही चेक लिया जाएगा
म्यूचुअल फंड वितरक केवल फंड हाउस के नाम से ही चेक या या ऑटो डेबिट के लिए निवेशक की मंजूरी ले सकता है। यूनिट बेचते समय दो बार इसे सुनिश्चित करना होगा कि सही निवेशक ही अपनी यूनिट बेच रहा है।

nएक अप्रैल से लागू होना था नियम
सेबी ने यह भी निर्देश दिया था कि इस नियम को एक अप्रैल, 2022 से लागू किया जाए। हालांकि पिछले महीने ही एंफी ने सेबी से अपील की थी कि इसके लिए थोड़ा और समय दिया जाए, क्योंकि नई व्यवस्था को अपनाने के लिए अभी पूरी तैयारी नहीं है।


सेबी ने इस अपील को मानते हुए कहा कि एक जुलाई से इसे लागू किया जाए। इसके साथ ही एम्फी को भेजे गए पत्र में सेबी ने कहा कि अक्तूबर, 2021 से इसके लिए काफी समय दिया जा चुका है।

च्यूइंग गम के भाव बिक रही है आपकी निजी जानकारी

जब आप फ्री वाउचर या डिस्काउंट पाने के लिए किसी साइट पर रजिस्टर करते हैं तो आप उनकी प्राइवेसी पॉलिसी पर हस्ताक्षर या क्लिक करते ही उन्हें अपनी जानकारी शेयर करने के लिए अधिकृत कर देते हैं.

Cyber Fraud

हाइलाइट्स

  • आपके नाम, पते से लेकर आपका मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी, आपकी ऑनलाइन खरीदारी, आपकी उम्र, शादी, आमदनी, पेशे आदि से जुड़ी जानकारियों की धड़ल्ले से खरीद-फरोख्त हो रही है.
  • डेटा ब्रोकर के पास किसी खास इलाके के रईसों (HNI), वेतन से आमदनी वाले लोगों, क्रेडिट कार्ड रखने वाले, कार मालिकों या रिटायर्ड महिलाओं की जानकारी उपलब्ध होती है.

आज कारोबार को आगे बढ़ाने में डेटा का खूब इस्तेमाल हो रहा है. आपके नाम, पते से लेकर आपका मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी, आपकी ऑनलाइन खरीदारी, आपकी उम्र, शादी, आमदनी, पेशे आदि से जुड़ी जानकारियों की धड़ल्ले से खरीद-फरोख्त हो रही है. आपकी ये निजी जानकारियां मामूली कीमत पर बिक्री के लिए उपलब्ध हैं.

पिछले एक महीने में ईटी ने डेटा ब्रोकर के नाम से कारोबार कर रही कई कंपनियों से संपर्क किया. ये कंपनियां ऑनलाइन लिस्टिंग पर बाज की तरह नजर रखती हैं. ये लोगों की व्यक्तिगत जानकारियां बेचती हैं.

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन डेटा ब्रोकर ने ईटी से बेंगलुरु, हैदराबाद और दिल्ली के एक लाख लोगों की व्यक्तिगत जानकारी बेचने के लिए 10-15,000 रुपये में सौदा पक्का कर लिया.

एक डेटा ब्रोकर ने ईटी से कहा कि उसके पास किसी खास इलाके के रईसों (HNI), वेतन से आमदनी वाले लोगों, क्रेडिट कार्ड रखने वाले, कार मालिकों या रिटायर्ड महिलाओं की जानकारी उपलब्ध है.

कुछ डेटा ब्रोकर ने हमें भरोसा दिलाने के लिए एक्सेल शीट में फ्री सैंपल भी भेज दिया. इसमें आमदनी और पते के हिसाब से बेंगलुरु के कुछ ग्राहकों की व्यक्तिगत जानकारी थी. इसके बाद ईटी ने इन आंकड़ों की सत्यता जांचने के लिए एक दर्जन लोगों को फोन किया. ये जानकारियां सही निकलीं.

इसके बाद ईटी ने ऐसे ही एक व्यक्ति हैदराबाद के राजाशेखर से बात की. उन्होंने कहा, "यह बहुत डरावना अनुभव है. मेरी व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल इस तरह किया जा रहा है?" गुरुग्राम के एक डेटा ब्रोकर ने AXIS और HDFC क्रेडिट कार्ड रखने वाले 3000 लोगों की व्यक्तिगत जानकारी ईटी को 1,000 रुपये में बेच दी.

इन जानकारी में ग्राहकों के नाम, फोन नंबर और कार्ड का प्रकार (डेबिट/क्रेडिट या प्रीमियम) आदि शामिल था. इस डेटा ब्रोकर ने ईटी से कहा कि दिल्ली, NCR और बेंगलुरु के 1.7 लाख ग्राहकों की जानकारी वह सिर्फ 7,000 रुपये में दे सकता है.

बेंगलुरु के नागराज बी के ने ईटी से कहा, "मुझे लगता है कि इस तरह ग्राहकों की व्यक्तिगत जानकारी बेचना अपराध है. मेरी अनुमति के बिना कोई मेरे लेन-देन की जानकारी किसी और को कैसे दे सकता है?"

इसी तरह ई-कॉमर्स साइट Amazon पर लगेज खरीदने की वजह से बेंगलुरु की श्रुति की व्यक्तिगत जानकारी ईटी को फ्री सैंपल के रूप में मिली. जब हमने श्रुति से इस बीमा ब्रोकर का नाम क्या होना चाहिए ट्रांजेक्शन की सत्यता की पुष्टि करने की कोशिश की तो वे डर गयीं. उन्हें इस बात पर आश्चर्य हुआ कि क्या Amazon से भी उनकी जानकारी लीक हो सकती है?

मुंबई की एक वकील का भी नाम इस सूची में शामिल था. उनके क्रेडिट कार्ड से किसी और व्यक्ति ने 70,000 रुपये की शॉपिंग कर ली. उन्हें इस बात से काफी आश्चर्य हुआ कि जिस महिला ने उन्हें कॉल किया उनके पास पहले से ही वकील साहब की पूरी जानकारी थी.

ईटी ने जब इस बारे में शॉपिंग साईट eBay से बात की तो उन्होंने कहा कि वे ग्राहकों की निजता का काफी सम्मान करते हैं. उनकी साईट पर ग्राहकों की जानकारी बिल्कुल सुरक्षित है. Amazon के एक प्रवक्ता ने कहा कि उन्हें डेटा लीक की कोई जानकारी नहीं है, ना ही वे अपनी तरफ से अपने ग्राहकों की जानकारी किसी और को बेचते हैं.

Amazon के प्रवक्ता ने कहा कि इस तरह की किसी सूचना पर वे गंभीरता से काम करते हैं. HDFC और Axis बैंक ने ईटी से कहा कि वे ग्राहकों की व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षित रखने के लिए उन्हें कई तरह से जागरूक कर रहे बीमा ब्रोकर का नाम क्या होना चाहिए हैं.

Axis बैंक के प्रवक्ता ने कहा, "डेटा ब्रोकर द्वारा बेचे जाने वाले आंकड़ों की सत्यता पर हम कोई कमेंट नहीं कर सकते, लेकिन हम सुरक्षित बैंकिंग के सभी प्रावधानों पर गंभीरता से अमल करते हैं."

इस बात के बाद सवाल यह उठता है कि डेटा ब्रोकर को ये आंकड़े मिलते कहां से हैं?

NCR के एक डेटा ब्रोकर ने ईटी से कहा, "इस तरह के ग्राहकों की व्यक्तिगत जानकारी हमें मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों से मिलती है. इसके साथ ही अस्पताल, बैंक, लोन एजेंट और कार डीलर भी हमें ये आंकड़े देते हैं."

आपको यह पता होना चाहिए कि भारत में डेटा ब्रोकिंग अवैध नहीं है, लेकिन यह कारोबार पर्दे की आड़ा में किया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डेटा ब्रोकिंग 200 अरब डॉलर का उद्योग है.

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर की ईडी मिषी चौधरी ने कहा, "जब आप फ्री वाउचर या डिस्काउंट पाने के लिए किसी साइट पर रजिस्टर करते हैं तो आप उनकी प्राइवेसी पॉलिसी पर हस्ताक्षर या क्लिक करते ही उन्हें अपनी जानकारी शेयर करने के लिए अधिकृत कर देते हैं."

अगर आप क्रेडिट/सिबिल स्कोर चेक करने के लिए किसी साइट पर अपनी जानकारी देते हैं तो ये आंकड़े भी स्टैंडर्ड फॉर्मेट में बैंक और वित्तीय संस्थानों से आते हैं. उनसे तुलना करने के बाद ही आपका क्रेडिट रिपोर्ट जेनरेट किया जाता है.

अपनी व्यक्तिगत जानकारी किसी भी साइट पर डालना आपके लिए खतरनाक हो सकता है. अगर आप प्राइवेसी का ख्याल रखते हैं तो अब आप शॉपिंग और ऑनलाइन ट्रांजेक्शन में भी निजी जानकारी सोच समझ कर ही दीजिये.

हिंदी में पर्सनल फाइनेंस और शेयर बाजार के नियमित अपडेट्स के लिए लाइक करें हमारा फेसबुक पेज. इस पेज को लाइक करने के लिए यहां क्लिक करें.

कमर्शल इनवॉइस के लिए ज़रूरी शर्तें

यह पक्का करना वेंडर की जवाबदेही है कि शिपिंग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कमर्शल इनवॉइस, सही तरीके से फ़ॉर्मैट किया गया हो, ताकि कस्टम में कोई देरी न हो. लॉजिस्टिक से जुड़े नियमों का पालन कराने वाली Alphabet की टीम और कस्टम क्लीयरेंस के लिए जिम्मेदार, नीचे बताए गए कस्टम ब्रोकर तक सही तरीके से जानकारी पहुंचाने के लिए, ये फ़ील्ड ज़रूरी हैं. दिशा-निर्देशों के लिए, एक कमर्शल इनवॉइस टेंप्लेट दी जाती है.

ध्यान दें: कुछ देशों में, भाषा से जुड़ी ज़रूरी शर्तें लागू होती हैं. पहले ही पुष्टि करने के लिए, कृपया [email protected] पर, स्थानीय टीम से संपर्क करें.

यह सुझाव दिया जाता है कि जिन शिपमेंट के कस्टम क्लियरेंस के लिए, Alphabet के नियंत्रण वाली इकाई ज़िम्मेदार है उनके लिए आपको, लॉजिस्टिक से जुड़े नियमों का पालन कराने वाली Alphabet की टीम को [email protected] पर पहले से चेतावनी देनी होगी.
सभी कमर्शल इनवॉइस, पैकिंग लिस्ट, और हाऊस एयर वेबिल (HAWB) या ट्रैकिंग नंबर [email protected] पर भेजें. ईमेल रेफ़रंस को “[Alphabet के नियंत्रण वाली इकाई का नाम] शिपमेंट की पहले से सूचना [परिवहन कंपनी का नाम] [HAWB या ट्रैकिंग नंबर]” के तौर पर नोट करें

Alphabet/Google को होने वाले हर अंतरराष्ट्रीय शिपमेंट के साथ कमर्शल इनवॉइस होना ज़रूरी है.
कमर्शल इनवॉइस में ये एलिमेंट ज़रूर होने चाहिए :

  1. कंपनी का नाम
  2. कंपनी का पता और फ़ोन नंबर
  3. दस्तावेज़ की पहचान करने के लिए “कमर्शल इनवॉइस”
  4. सेलर या एक्सपोर्टर का नाम और पता
  5. बायर या इंपोर्टर का (जिस कंपनी को बेचा जा रहा है) नाम और पता
  6. कंसाइनी (जिस कंपनी को भेजा जा रहा) का नाम और पता
    1. शिपमेंट पाने वाले कर्मचारी का नाम
    1. सामान का पूरा ब्यौरा, कोई शॉर्ट फ़ॉर्म नहीं
    2. एचएस क्लासिफ़िकेशन कोड (*परचेज़ ऑर्डर बनाते समय, Google में आपके संपर्क से लिया गया)
    3. मूल देश (जहां सामान बना है)

    वैल्यू शून्य नहीं हो सकती . अगर इनवॉइस में ऐसे नमूने या जांच वाले डिवाइस शामिल हैं जो बिल्कुल मुफ़्त में मिल रहे हैं, तो इनवॉइस में नीचे दी गई जानकारी शामिल करें: “ऐसे नमूने या टेस्ट डिवाइसें जिनकी कोई कमर्शल वैल्यू नहीं है या वैल्यू सिर्फ़ कस्टम के लिए लिखी गई है.”

    मुद्रा/भाड़ा/बीमा : कुछ देशों में स्थानीय स्तर पर अलग-अलग शर्तें/ज़रूरतें होती हैं. कृपया [email protected] पर स्थानीय टीम से, पहले ही पुष्टि करें.

रेटिंग: 4.31
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 757
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *