क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है?

आखिर कितना हरित है मेरा केंद्रीय बैंक?
यह दिलचस्प बात है क्योंकि केंद्रीय बैंक अक्सर अपना अधिकांश निवेश पोर्टफोलियो स्वर्ण, राष्ट्रीय और विदेशी नकदी तथा सॉवरिन बॉन्ड के रूप में रखते हैं। ऐसे में कोई व्यक्ति यह आकलन कैसे करेगा कि बॉन्ड और नकद परिसंपत्तियां कार्बन-न्यूट्रल हैं या नहीं? अजीब बात यह भी है कि सोने को कार्बन-न्यूट्रल आकलन से बाहर रखा गया है क्योंकि इसका आकलन करने का कोई तरीका मौजूद नहीं था। मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि सोने की खदान में होने वाला काम कार्बन-न्यूट्रल है, लेकिन फिलहाल इसे जाने दें।
इस विषय पर जो भी सामग्री उपलब्ध है वह सरकारी वित्त के बुनियादी सिद्धांत की अनदेखी करती है। सरकार का राजस्व सीधे व्यय से संबद्ध नहीं है। सरकार अपना कर राजस्व बढ़ाने के लिए व्यय नहीं करती। यह बात डेट के जरिये भरपाई किए जाने वाले सरकारी व्यय पर भी लागू होती है। यदि ऐसे डेट फाइनैंसिंग वाले व्यय का इस्तेमाल केवल पूंजीगत व्यय के लिए किया जाए तो भी पूंजीगत व्यय के पोर्टफोलियो का आकलन उसके कार्बन प्रभाव के आधार पर नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसे निवेश का बड़ा हिस्सा वित्तीय निवेश होता है। ऐसा भी नहीं है कि वे राजस्व केवल इसलिए जुटाते हैं ताकि क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? आम परिवारों की तरह वस्तुएं एवं सेवाएं जुटा सकें। इसके अलावा सरकारी व्यय का बड़ा हिस्सा स्थानांतरण में होता है जो अर्थव्यवस्था में संसाधनों का आवंटन एवं वितरण को प्रभावित करना चाहती है। इनकी भरपाई डेट या करों के माध्यम से होती है लेकिन यहां व्यय का प्रयोग उस संदर्भ में नहीं होता है जिस संदर्भ में कंपनियां और आम परिवार करते क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? हैं।
यदि घरेलू कर्ज का इस्तेमाल उच्च कार्बन निवेश की भरपाई के लिए किया जाता है तो ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे कोई केंद्रीय बैंक ऐसे ऋण जारी करने से इनकार कर सके क्योंकि (अ) यह केंद्रीय बैंक के काम का हिस्सा नहीं है कि वह सरकार को बताए कि पैसा कैसे खर्च करना है, (ब) विशिष्ट सॉवरिन बॉन्ड को किसी विशिष्ट निवेश गतिविधि के लिए आवंटित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इन्हें राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए जारी किया क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? जाता है और इसलिए ये अपनी प्रकृति में निरपेक्ष होते हैं। विदेशी ऋण के साथ संबद्धता की कमी और भी प्रखर है। इसके अलावा केंद्रीय बैंक विदेशी ऋण क्यों लेते हैं, इसका उन्हें जारी करने के उद्देश्य से कोई लेनादेना नहीं होता।
जब केंद्रीय बैंकों के पास कॉर्पोरेट फाइनैंशियल परिसंपत्तियां होती हैं तो जाहिर है हालात बिल्कुल अलग होते हैं। लेकिन तब यह सवाल पैदा होता है कि केंद्रीय बैंक कॉर्पोरेट परिसंपत्तियां रखते ही क्यों हैं? यह उन प्रोत्साहन पैकेज की विरासत है जो कई पश्चिमी केंद्रीय बैंकों ने संकट के समय अपने वित्तीय क्षेत्र को दिए। ऐसे अन्यायपूर्ण निवेश में कार्बन-न्यूट्रल का आकलन मामले को और जटिल बना देता है।
ग्रीन क्लाइमेट तथा अन्य बॉन्ड तथा तयशुदा आय की परिसंपत्तियां कार्बन-न्यूट्रल की स्पष्ट और क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? प्रत्याशित गारंटी की पेशकश करते हैं। जब तक ये सॉवरिन इश्यूएंस का हिस्सा हैं जब तक कुल उधारी में उनकी हिस्सेदारी को विश्वसनीय मानक के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। यहां दो समस्याएं हैं। पहली यह कि ये सॉवरिन की विशिष्ट शक्ति को कम करके प्रतिमोच्य संसाधन (कर या ऋण) हासिल करती है। यह राज्य के मामलों के संचालन का एक अहम घटक है। कल्पना कीजिए कि युद्ध या महामारी के दौर में कार्बन-न्यूट्रल होने की जरूरत फाइनैंसिंग को प्रभावित करती है। इसके बावजूद कुछ प्रगति की जा सकती है। इंडोनेशियन सुकुक इसका उदाहरण है। दूसरी बात यह कि हरित फाइनैंसिंग हरित खरीद या उपयोगिता की गारंटी नहीं देती जो कम से कम कार्बन-न्यूट्रल होती है। यदि एक ग्रीन बॉन्ड का इस्तेमाल किसी रेलवे परियोजना के वित्त पोषण के लिए किया जाता है लेकिन रेल निर्माण और संचालन में इस्तेमाल होने वाली बिजली और कार्बन खराब ढंग से बनते हैं और रेलवे का इस्तेमाल भी प्राथमिक तौर पर खनन वस्तुओं के उत्पादन के लिए होता है तो क्या उसे कार्बन-न्यूट्रल कहा जा सकता है? मुझे आशंका है कि केंद्रीय बैंक चूंकि आमतौर पर वित्तीय क्षेत्र के प्रोत्साहन को टालने में नाकाम साबित हुए हैं और उनका सामना इस हकीकत से हुआ है कि किसी तरह की स्वतंत्रता उन्हें अमेरिकी बाजार में नकदी बढ़ाने के प्रभाव या चीन के आसपास के क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के कदमों से सुरक्षित नहीं रख सकती। ऐसे में जलवायु परिवर्तन की समस्या एक ध्यान बंटाने वाली जनसंपर्क की कवायद बनकर रह गई जिसका इस्तेमाल इस हकीकत को छिपाने के लिए किया गया कि वे एक असमान और अनुचित वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के अधीन होकर रह गए हैं।
इन तमाम बातों के बीच में हम केंद्रीय समस्या की अनदेखी कर गुजरते हैं। अनदेखी इस बात की कि कैसे दुनिया कार्बनीकृत हुई है और बहुत कम लोग बहुत अधिक वस्तुओं का उपभोग कर रहे हैं क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? जबकि बहुत सारे लोगों के उपभोग के लिए कुछ खास नहीं है। यदि खपत के रुझान में अभिसरण नहीं होता है तो कार्बन के आवश्यकता से अधिक होने के कारण यह फैलेगा। जब तक अमीर और प्रभावशाली वर्ग द्वारा की जाने वाली खपत की बाह्य नकारात्मकताओं को चिह्नित करके उन्हें हतोत्साहित नहीं किया जाएगा और गरीब भौगोलिक क्षेत्रों में हरित निवेश की मदद से समृद्ध नहीं बनाया जाएगा तब तक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से प्रभावी ढंग से नहीं निबटा जा सकता।
विश्व आर्थिक मंच के संस्थापक क्लॉज श्वाब ने हाल ही में इस बारे में खुलकर बात की कि सन 2050 में जलवायु परिवर्तन उनके नाती-पोतों के समक्ष किस तरह का खतरा पैदा करेगा लेकिन मुंबई की झोपड़पट्टी में रहने वाले बच्चे तो अगले मॉनसून में ही डूबने लगेंगे, उन्हें 2050 में बढऩे वाले समुद्री स्तर का इंतजार नहीं करना होगा। इन बच्चों की समृद्धि बढ़ाने के क्रम में डॉॅ. श्वाब के पोतों का बलिदान भी बढ़ाना होगा तभी हमारे इस साझा ग्रह को स्थायित्व क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? मिल सकेगा। खपत के रुझान में अभिसरण में यह बात शामिल होगी कि अमीरों की संतानें पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाएं जबकि गरीबों की संतानों को पर्याप्त अवसर मिले। अमीरों की असमान जीवनशैली की भरपाई के लिए केवल पुनर्चक्रण और पवन ऊर्जा का सहारा लेने से बात नहीं बनेगी।
(लेखक ओडीआई, लंदन के प्रबंध निदेशक हैं। लेख में व्यक्त विचार क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? निजी हैं)
लगातार चौथे हफ्ते सरकारी बॉन्ड को क्यों नहीं मिले खरीदार?
रुपये में कमजोरी है. बॉन्ड यील्ड में उछाल है. साथ ही क्रूड ऑयल की कीमतें ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं. बॉन्ड की मांग पर इन सभी कारणों का असर पड़ा है
वित्त वर्ष 2018-19 में सरकार ने अब तक 72,000 करोड़ रुपये का उधार लिया है. इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में सरकार ने करीब 2.9 लाख करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई है. इस साल मार्च में प्रकाशित बॉन्ड नीलामी के कैलेंडर से यह जानकारी मिलती है. सरकार हर साल उधार से बड़ी रकम जुटाती है. इसके लिए वह बॉन्ड जारी करती है. इसका बड़ा असर बॉन्ड की कीमतों पर पड़ता है.
बॉन्ड की कीमत और यील्ड में विपरीत संबंध होता है. बॉन्ड की कीमत बढ़ने पर इसकी यील्ड घट जाती है. इसके उलट बॉन्ड की कीमत घटने पर यील्ड बढ़ जाती है. अभी दुनिया के कई देशों में बॉन्ड यील्ड में उछाल देखा जा रहा है. अमेरिका में बॉन्ड यील्ड 3 फीसदी तक पहुंच गई है.
पिछले हफ्ते सराकर और आरबीआई ने स्थिति से निपटने के लिए बड़ा कदम उठाया था. आरबीआई ने शॉर्ट टर्म पेपर्स (छोटी अवधि के इंस्ट्रूमेंट्स) खुले बाजार से खरीदकर बैंकिंग सिस्टम में 10,000 करोड़ रुपये का फंड डालने का एलान किया था.
बॉन्डस में कारोबार करने वाले डीलरों का कहना है कि सोमवार को ओपन मार्केट ऑपरेशन में बैंकिंग सिस्टम में मांग और आपूर्ति की स्थिति अच्छी थी. लेकिन एसएलआर में बहुत ज्यादा बॉन्ड होने के चलते नीलामी में कमर्शियल बैंकों की तरफ से ज्यादा मांग देखने को नहीं मिली.
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RBI का बड़ा बदलाव : अब सरकारी बॉन्ड में सीधे लेनदेन कर सकेंगे आम निवेशक, केंद्रीय बैंक में खुलेगा खाता
निवेश के ख्याल से सरकारी बॉन्ड को बेहद सुरक्षित माना जाता है. इस बॉन्ड को सरकार जारी करती है, इसलिए इसमें बाजार का जोखिम कम होता है और बेहतरीन रिटर्न भी मिलता है.
RBI MPC Meeting : खुदरा निवेशक अब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के जरिए सरकारी बॉन्ड में लेनदेन कर सकेंगे. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मौद्रिक नीति समीक्षा जारी करते हुए इस बात की जानकारी दी है. उन्होंने इस बात की भी जानकारी दी है कि सरकारी बॉन्ड में लेनदेन करने के लिए कोई भी व्यक्ति आरबीआई में खाता खुलवा सकता है. इसके साथ ही, भारत अब उन देशों में शामिल हो गया है, जहां के आम निवेशक सरकारी बॉन्ड में लेनदेन करते हैं. इसे बहुत बड़ा बुनियादी बदलाव माना जा रहा है.
सरकारी बॉन्ड में निवेश सुरक्षित
बता दें कि अभी तक खुदरा निवेशक सरकारी सिक्योरिटीज में लेनदेन करते हैं, लेकिन आरबीआई की ओर से बड़ा बदलाव किए जाने के बाद वे सीधे सरकारी बॉन्ड में लेनदेन कर सकेंगे. यह एक नया कदम है. दरअसल, सरकारी बॉन्ड में खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सरकार और आरबीआई ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.
क्यों जारी किया जाता है सरकारी बॉन्ड
गौरतलब है कि निवेश के ख्याल से सरकारी बॉन्ड को बेहद सुरक्षित माना जाता है. इस बॉन्ड को सरकार जारी करती है, इसलिए इसमें बाजार का जोखिम कम होता है और बेहतरीन रिटर्न भी मिलता है. इसके साथ ही, सरकारी बॉन्ड एक डेट इंस्ट्रुमेंट है, जिसकी खरीद-बिक्री की जाती है. केंद्र और राज्य सरकारें इस बॉन्ड को जारी करती हैं. कई बार नकदी संकट पैदा हो जाने की वजह से केंद्र और राज्य सरकारों को फंड की जरूरत पड़ती है. नकदी की कमी होने की वजह से बाजार से रकम जुटाने के लिए केंद्र और राज्य क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? सरकारें बॉन्ड जारी करती हैं. ये बॉन्ड छोटी और दीर्घावधि के लिए जारी किए जाते हैं.
दो तरह का बॉन्ड जारी करती है सरकार
नकदी संकट से उबरने के लिए सरकार की ओर से दो प्रकार के बॉन्ड जारी किए जाते हैं. कम समय के लिए जारी किए जाने वाले बॉन्ड को सिक्योरिटी ट्रेजरी बिल कहा जाता है. यह एक साल से कम अवधि के लिए जारी किया जाता है. इसके साथ ही, एक साल से अधिक समय के लिए जारी किया जाने वाला बॉन्ड ही सरकारी बॉन्ड कहलाता है. केंद्र सरकार दोनों प्रकार के बॉन्ड को जारी करती है, जबकि राज्य सरकारों के पास केवल डेट सिक्योरिटी जारी करने का अधिकार है.
कौन करता है सरकारी बॉन्ड की खरीद-बिक्री
सरकारी बॉन्ड की खरीद-बिक्री म्यूचुअल फंड, प्रोविडेंट फंड, बीमा कंपनियां, कमर्शियल बैंक, प्राइमरी डीलर, को-ऑपरेटिव बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और पेंशन फंड करते हैं. इसमें एक साथ सरकारी बॉन्ड खरीदने और बेचने के लिए बोली लगाई जाती है. इसमें विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को सीमित कारोबार की क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? इजाजत दी जाती है. कंपनियां भी सरकारी सिक्योरिटीज की खरीद-बिक्री करती हैं.
Sovereign Gold Bond Scheme: सस्ती कीमत पर गोल्ड में निवेश का मौका, 20 जून से कर सकेंगे खरीदारी
डिजिटल माध्यम से बॉन्ड के लिये आवेदन और भुगतान करने वाले निवेशकों के लिये निर्गम मूल्य 50 रुपये प्रति ग्राम कम होगा। निवेशकों को निर्धारित मूल्य पर सालाना 2.5 प्रतिशत ब्याज छमाही आधार पर दिया जाएगा।
निवेश के लिए सस्ता गोल्ड खरीदना चाहते हैं तो 20 जून से आपको एक खास मौका मिलने क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? वाला है। दरअसल, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) योजना 2022-23 की पहली सीरीज खरीद के लिए 20 जून से पांच दिनों के लिए खुलेगी। वहीं, योजना की दूसरी सीरीज में आवेदन के लिए 22 से 26 अगस्त तक मौका रहेगा।
योजना की डिटेल:क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? इस योजना के तहत सरकार बॉन्ड जारी करती है। ये बॉन्ड निवासी व्यक्तियों, अविभाजित हिंदू परिवार (एचयूएफ), न्यासों, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थाओं को ही बेचे जा सकते है। इसके तहत आप कम से कम 1 ग्राम और अधिकतम 4 किलोग्राम गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना की अवधि आठ वर्ष के लिए होगी, जिसमें 5वें वर्ष के बाद इसे समय पूर्व मैच्योर किया जा सकता है।
अगर आप डिजिटल माध्यम से बॉन्ड के लिये आवेदन और भुगतान करने वाले निवेशकों के लिये निर्गम मूल्य 50 रुपये प्रति ग्राम कम होगा। निवेशकों को निर्धारित मूल्य पर सालाना 2.5 प्रतिशत ब्याज छमाही आधार पर दिया जाएगा।
आपको बता दें कि पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 12,991 करोड़ रुपये मूल्य के 10 किस्तों में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना जारी किए गए थे। इसको बैंकों, स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CCIL), डाकघरों और दो स्टॉक एक्सचेंजों (NSE और BSE) के माध्यम से खरीदा या बेचा जा सकता है।