खास टिप्स

आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है?

आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है?

एनवाई फेड सर्वेक्षण से पता चलता है कि गैस आउटलुक में रिकॉर्ड-उच्च कूद पर अक्टूबर में मुद्रास्फीति की उम्मीदें बढ़ीं

न्यू यॉर्क फेड के मासिक सर्वे ऑफ कंज्यूमर एक्सपेक्टेशंस के अनुसार, आने वाले वर्ष के लिए मुद्रास्फीति की उम्मीदें बढ़कर 5.9% हो गई, जो सितंबर से जुलाई के बाद के उच्चतम स्तर पर आधा प्रतिशत अंक है। तीन साल की उम्मीदें भी बढ़कर 3.1% हो गईं, जबकि पांच साल का दृष्टिकोण बढ़कर 2.4% हो गया, क्रमशः 2.9% और 2.2% से बढ़ गया।

संबंधित निवेश समाचार

बढ़ी हुई चिंताओं की जड़ में पंप पर कीमतों में अपेक्षित उछाल था, जो पिछले एक महीने से गिर रहा है।

उत्तरदाताओं का मानना ​​है कि गैस की कीमतों में अगले वर्ष की तुलना में 4.8% की वृद्धि होगी, जो सितंबर में 0.5% से बढ़कर सर्वेक्षण डेटा में जून 2013 तक की सबसे बड़ी एक महीने की वृद्धि है।

खाद्य कीमतों के लिए वर्ष-आगे के अनुमान में आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? वृद्धि हुई, उपभोक्ताओं को अब 7.6% की वृद्धि की उम्मीद है, जो सितंबर में 6.8% थी। चिकित्सा लागत और किराए के लिए दृष्टिकोण थोड़ा बदल गया था, बाद में 0.1 प्रतिशत अंक के साथ, जबकि कॉलेज की लागत की उम्मीदें गिरकर 8.6% हो गईं, सितंबर से 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई।

श्रम सांख्यिकी ब्यूरो की रिपोर्ट के एक हफ्ते से भी कम समय बाद यह सर्वेक्षण आया है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा अनुमानित मुद्रास्फीति, अक्टूबर में 0.4% बढ़ा. यह मासिक लाभ के लिए डॉव जोन्स के 0.6% अनुमान से कम था, जबकि 7.7% की वार्षिक वृद्धि पिछले महीने की तुलना में आधा प्रतिशत कम थी।

फेड नीति निर्माता रहे हैं ब्याज दरों को आक्रामक रूप से बढ़ाना इस साल महंगाई कम करने के लिए वृद्धि की एक श्रृंखला ने केंद्रीय बैंक की बेंचमार्क दर को लगभग 3.75 प्रतिशत अंक बढ़ा दिया है, बाजारों में 2023 के शुरुआती भाग में अतिरिक्त बढ़ोतरी की उम्मीद है।

वृद्धि का पहले से ही कुछ प्रभाव पड़ा है, विशेष रूप से आवास बाजार में, जहां 30 साल की बंधक दरें लगभग 7% ने बिक्री और कीमतों को प्रभावित किया है।

घर की कीमतों में 2% की बढ़ोतरी की उम्मीद थी, जो सितंबर के समान थी और जून 2020 के बाद से सबसे कम थी।

लाल-गर्म श्रम बाजार को ठंडा करने के फेड के प्रयासों का भी कुछ प्रभाव होने का अनुमान है। कुछ 42.9% उत्तरदाताओं ने अप्रैल 2020 के बाद से उच्चतम स्तर का प्रतिनिधित्व करते हुए, बेरोजगारी दर अब से एक वर्ष ऊपर होने की उम्मीद की है।

सर्वेक्षण में, हालांकि, अगले वर्ष 4.3 प्रतिशत की घरेलू आय के लिए एक रिकॉर्ड स्तर की औसत उम्मीद दिखाई गई। खर्च वृद्धि पूर्ण प्रतिशत बढ़कर 7% हो गई।

क्रेडिट आने के लिए कठिन होने की उम्मीद है – एक रिकॉर्ड-उच्च 56.7% का मानना ​​​​है कि अब से एक वर्ष के लिए वित्तपोषण प्राप्त करना अधिक कठिन होगा।

प्रोफेशनल फोरकास्टर्स के तिमाही सर्वेक्षण से सोमवार को जारी एक अलग गेज ने भी कम आर्थिक विकास के साथ उच्च मुद्रास्फीति की ओर इशारा किया। सर्वेक्षण में इस वर्ष सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि केवल 1.6% और 2023 में 1.3% देखी गई है, जबकि सीपीआई मुद्रास्फीति 2022 में 7.7% और 2023 में 3.4% होने का अनुमान है, जो पिछले अनुमानों में क्रमशः 7.5% और 3.2% है।

यूएस ट्रेजरी ने भारत को उसकी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से हटाया

वाशिंगटन : अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने इटली, मैक्सिको, वियतनाम और थाईलैंड के साथ भारत को अपनी मुद्रा निगरानी सूची से हटा दिया है.

ट्रेजरी विभाग ने कांग्रेस को अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट में कहा कि चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान वर्तमान निगरानी सूची का हिस्सा हैं।

ट्रेजरी ने "प्रमुख व्यापारिक भागीदारों की एक निगरानी सूची स्थापित की है जो उनकी मुद्रा प्रथाओं और व्यापक आर्थिक नीतियों पर ध्यान देने योग्य हैं"।

यह कदम उस दिन आया जब ट्रेजरी के सचिव जेनेट येलेन ने भारत का दौरा किया और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बातचीत की।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 के अधिनियम में तीन मानदंडों में से दो को पूरा करने वाली अर्थव्यवस्था को निगरानी सूची में रखा गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, "एक बार निगरानी सूची में, एक अर्थव्यवस्था कम से कम दो लगातार रिपोर्ट के लिए बनी रहेगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रदर्शन बनाम मानदंड में कोई सुधार टिकाऊ है और अस्थायी कारकों के कारण नहीं है।"

इसने कहा कि एक और उपाय के रूप में, ट्रेजरी निगरानी सूची में किसी भी प्रमुख अमेरिकी व्यापारिक भागीदार को जोड़ेगी और बनाए रखेगी, जो समग्र अमेरिकी व्यापार घाटे के एक बड़े और अनुपातहीन हिस्से के लिए जिम्मेदार है, भले ही वह अर्थव्यवस्था 2015 के तीन मानदंडों में से दो को पूरा नहीं करती हो। कार्यवाही करना।

"इस रिपोर्ट में, निगरानी सूची में चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान शामिल हैं। इटली, भारत, मैक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम को इस रिपोर्ट में निगरानी सूची से हटा दिया गया है, जो केवल एक से मिले हैं। लगातार दो रिपोर्टों के लिए तीन मानदंड," ट्रेजरी ने कहा।

इसने कहा कि विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप को प्रकाशित करने में चीन की विफलता और इसकी विनिमय दर तंत्र की प्रमुख विशेषताओं के आसपास पारदर्शिता की व्यापक कमी इसे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक बाहरी बनाती है और ट्रेजरी की करीबी निगरानी की गारंटी देती है।

यूएस ट्रेजरी विभाग वॉचलिस्ट पर एक व्यापारिक भागीदार को सूचीबद्ध करता है यदि उस तथाकथित देश ने 12 महीने की अवधि में अपने सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत से अधिक स्तर तक मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया था, और 2 प्रतिशत का चालू खाता अधिशेष था सकल घरेलू उत्पाद का और अमेरिका के साथ एक व्यापार अधिशेष।

रिपोर्ट में, ट्रेजरी ने 2015 के अधिनियम में तीन मानदंडों के लिए स्थापित थ्रेसहोल्ड ट्रेजरी के खिलाफ 20 सबसे बड़े अमेरिकी व्यापारिक भागीदारों की समीक्षा की।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएस ट्रेजरी 1988 अधिनियम और 2015 अधिनियम दोनों की आवश्यकताओं के तहत अमेरिकी व्यापारिक भागीदारों की विदेशी मुद्रा और मैक्रोइकॉनॉमिक नीतियों को ध्यान से ट्रैक करना जारी रखता है, और यह आकलन करने के लिए उपयुक्त मैट्रिक्स की समीक्षा करता है कि नीतियां मुद्रा के गलत संरेखण और वैश्विक असंतुलन में कैसे योगदान करती हैं।

इसने यह भी कहा कि अमेरिकी प्रशासन ने "हमारे प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के लिए एक मजबूत और स्थायी वैश्विक सुधार का समर्थन करने के लिए नीति उपकरणों को सावधानीपूर्वक जांचने की जोरदार वकालत की है"।

इसमें कहा गया है कि ट्रेजरी बाहरी संतुलन, विदेशी मुद्रा भंडार और समय पर और पारदर्शी तरीके से हस्तक्षेप से संबंधित डेटा प्रकाशित करने वाली सभी अर्थव्यवस्थाओं के महत्व पर जोर देना जारी रखता है।

यू.एस. 1988 अधिनियम के तहत, इसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और विनिमय दर नीति पर कांग्रेस को अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट प्रदान करने के लिए ट्रेजरी के सचिव की आवश्यकता होती है।

अमेरिका के 1988 के अधिनियम की धारा 3004 के तहत, सचिव को "इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या देश अपनी मुद्रा और अमेरिकी डॉलर के बीच विनिमय दर में हेरफेर करते हैं ताकि भुगतान संतुलन के प्रभावी समायोजन को रोकने या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अनुचित प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करने से रोका जा सके।"

रिपोर्ट ने जून 2022 तक चार तिमाहियों में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और विनिमय दर नीतियों में विकास का आकलन किया।

रिपोर्ट में विश्लेषण 1988 के सर्वव्यापी व्यापार और प्रतिस्पर्धात्मकता अधिनियम (1988 अधिनियम) की धारा 3001-3006 (22 यूएससी एसएसएसएस 5301-5306 पर संहिताबद्ध) और 2015 के व्यापार सुविधा और व्यापार प्रवर्तन अधिनियम की धारा 701 और 702 द्वारा निर्देशित किया गया था। (2015 अधिनियम)।

"प्रशासन संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापारिक भागीदारों द्वारा अमेरिकी श्रमिकों पर अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए मुद्रा मूल्यों में कृत्रिम रूप से हेरफेर करने के प्रयासों का कड़ा विरोध करता है। ट्रेजरी अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर जी -20, जी- 7, और आईएमएफ में," रिपोर्ट में कहा गया है।

"सभी जी -20 सदस्य इस बात पर सहमत हुए हैं कि अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता के लिए मजबूत मूलभूत और ठोस नीतियां आवश्यक हैं और प्रतिस्पर्धी उद्देश्यों के लिए हमारी विनिमय दरों को लक्षित नहीं करना है। सभी आईएमएफ सदस्यों ने एक अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए अपनी विनिमय दरों में हेरफेर करने से बचने के लिए प्रतिबद्ध किया है। अन्य सदस्यों पर प्रतिस्पर्धात्मक लाभ, "रिपोर्ट में कहा गया है। (एएनआई)

मुक्तिबोध: ज़माने के चेहरे पर…ग़रीबों की छातियों की ख़ाक है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मुक्तिबोध ने आज से लगभग छह आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? दशक पहले जो भारतीय यथार्थ अपनी कविता में विन्यस्त किया था, वह अपने ब्यौरों तक में आज का यथार्थ लगता है. The post मुक्तिबोध: ज़माने के चेहरे पर… ग़रीबों की छातियों की ख़ाक है appeared first on The Wire - Hindi.

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मुक्तिबोध ने आज से लगभग छह दशक पहले जो भारतीय यथार्थ अपनी कविता में विन्यस्त किया था, वह अपने ब्यौरों तक में आज का यथार्थ लगता है.

गजानन माधव मुक्तिबोध. [जन्म: 13 नवंबर 1917 – अवसान: 11 सितंबर 1964] (फोटो साभार: विकीपीडिया)

एक कला-वीथिका ने कुछ दिनों पहले ‘भाषा, रूप और स्मृति’ पर एक खुली बातचीत रखी जिसमें समाज-चिंतक आशीष नंदी, चित्रकार मनीष पुष्कले और मैंने भाग लिया. शुरुआत मैंने कुछ स्थापनाओं से की. भाषा रूप है जिसमें स्मृति अनुगुंजित होती रहती है. न तो भाषा, न ही स्मृति बिना किसी रूप के संभव है.

स्मृति रूप और भाषा में ही प्रायः रहती है, अन्यत्र बहुत कम. हमारे समय में लगभग रोज़ीना भाषा और स्मृति पर हमले हो रहे हैं. भाषा को निरे उपकरण में और स्मृति को विस्मरण में बदला जा रहा है. कलाएं स्मृति को अंगीकार करती हुई वैकल्पिक भाषाएं विकसित करती हैं. यह तो संभव है आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? कि बिना भाषा या स्मृति के रूप हो पर तब वह निरर्थक होगा, उसमें अर्थ की कोई संभावना नहीं हो सकती.

क्या भाषा का काम स्मृति के बिना चल सकता है? क्या स्मृति का काम भाषा के बिना चल सकता है? कोई भी कला, बिना जीवन और भाषा के, संभव नहीं- शब्दों की भाषा, रंग-रेखाओं की भाषा, स्वरों की भाषा, भाव-भंगिमाओं की भाषा आदि.

बातचीत में अनेक पक्ष उभरे. आशीष जी ने इस ओर ध्यान दिलाया कि सर्जनात्म्क विधाएं हैं जैसे कविता, संगीत, गणित जिनमें सर्जना के चरम क्षणों में माध्यम और प्रयोक्ता इतने तदात्म हो जाते हैं कि उनमें कोई दूरी या अंतर नहीं रह जाता: तब कविता या संगीत खुद अपने को ही रचने लगता आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? है. मैंने इसकी पुष्टि में यह प्रसंग जोड़ा जिसमें उस्ताद अली अकबर खां ने कहा था कि कुछ देर तो वे सरोद बजाते हैं और फिर सरोद उन्हें बजाने लगता है.

मनीष ने याद किया कि रज़ा साहब कहते थे कि बिना दिव्य शक्तियों के सहयोग के अच्छी कला संभव नहीं है. यह भी प्रवाह में आया कि रचना-प्रक्रिया में सब कुछ पूरी तरह से ज्ञेय या स्पष्ट नहीं होता और कुछ-न-कुछ रहस्मय बना रहता है. यह कोई रूमान नहीं है, यह सर्जना की सचाई है.

जिन्हें सब कुछ पहले से पता होता है कि कहां और कैसे जाना है वे प्रायः अच्छी कला की रचना नहीं कर पाते. लिखना या रचना बंधे-बंधाए रास्तों पर चलना नहीं, पगडंडियों और कई बार वर्जित मार्गों पर भटकना होता है. उसमें जोखिम होता है पर बिना जोखिम के सर्जना नहीं होती.

बातचीत में सुनने-गुनने के लिए थोड़े-से लोग थे. पर उन्होंने मनोयोग से सुना. ऐसे आयोजन अधिक होने चाहिए ताकि कलाकार, चिंतक और रसिकता के बीच आत्मीय संवाद हो, दूरी या द्वैत के बजाय हम आहंगी और तादात्म्य बढ़े और पुष्ट हो. इस कुसमय में सारे बड़े संवाद झगड़ों या तमाशों में घटाए जा चुके हैं. इस समय ऐसे छोटे आत्मीय संवादों की बड़ी ज़रूरत है.

तीज-त्योहार और कविता

कई बार क्रिसमस के अवसर पर पोलैंड या फ्रांस में रहने का अवसर मिला. उस समय कहां पुस्तकों की दुकानों में क्रिसमस पर कविताओं के नए संचयन प्रदर्शित होते थे और उनमें इधर लिखी ताज़ा कविताएं भी संकलित होती थीं. बड़े पश्चिमी कवियों ने, जिनमें यीट्स, इलियट, चेश्वाव मीवोष, फिलिप लार्किन आदि शामिल हैं, अपने तीज-त्योहारों पर कविताएं लिखी हैं.

चूंकि इन दिनों, भारत में त्योहारों को लेकर बड़ी चहल-पहल, रौनक और व्यापार हो रहे हैं, यह सोचना शुरू किया कि हिन्दी की खड़ी बोली कविता में पिछले लगभग सौ बरसों में तीज-त्योहारों को लेकर कितनी कविताएं हैं. लगा कि बहुत नहीं हैं, शायद इतनी भी नहीं कि उन्हें एक संग्रह में एकत्र किया जा सके.

दीवाली की बड़ी जगमगाहट है पर दीवाली पर हमारे पास कितनी सुंदर कविताएं हैं जो दीप-सुषमा, दीप-वैभव आदि को स्मरणीय ढंग से व्यक्त करती हों? उर्दू में अकेले नज़ीर अकबराबादी ने सभी हिंदू तीज-त्योहारों और देवताओं पर इतनी सारी कविताएं लिखी हैं कि उनके मुक़ाबले में किसी हिन्दी कवि को खड़ी बोली में खड़ा ही नहीं किया जा सकता.

पिछले लगभग सात-आठ दशकों से कविता में साधारण जनजीवन, अपनी लोक रंगतों-लयों-छबियों-अंतरध्वनियों में व्यक्त-विन्यस्त हुआ है. पर हमारे तीज-त्योहार इस कविता-विन्यस्त जन-जीवन में इतने कम और धूमिल क्यों है?

याद आता है कि अकेले कुंभ मेले को लेकर जब निर्मल वर्मा ने एक लंबा संस्मरण लिखा था तो बड़ा बवाल मचा था और आज भी उसे विवादास्पद किया जाता है, जबकि त्रिलोचन की कुंभ मेले पर कविताओं का लगभग कोई नोटिस ही नहीं लिया गया.

क्या हमारे बीच एक अघोषित पर सशक्त वर्जना सक्रिय है कि तीज-त्योहार हमारे पिछड़ेपन के अनुष्ठान हैं और इनमें हमें अपने को दूर ही रचना चाहिए. यह दूरी सिर्फ़ साहित्य में है क्योंकि बाक़ी निजी और सामाजिक जीवन में अधिकांश कवि और लेखक ये तीज-त्योहार मनाते ही हैं. यह कार्य-विभाजन है या एक अधिकतर अलक्षित पाखंड?

ज़ाहिर है इस मामले को किसी दो टूक ढंग से नहीं समझाया जा सकता. इसका कुछ न कुछ मूल हमारी भारतीय आधुनिकता में है जिसमें हम सब, कई बार अचेत ढंग से, शामिल हैं. पश्चिम जगत का आधुनिक नागरिक किसी ईसाई अभिप्राय, रूढ़ि, अनुष्ठान या त्योहार पर निस्संकोच लिख सकता है और उसे पिछड़ा या कम आधुनिक नहीं माना जाता.

लेकिन हमारे यहां यह संकोच है, गहरा है और हमारे जनजीवन के प्रामाणिक चित्रण से, इसलिए, शायद बाहर है. हर अनुष्ठान को असह्य भौंडे तमाशे में बदल देने वाली राजनीतिक शक्तियां क्या इस ख़ालीपन का लाभ उठा रही हैं? इस पर कुछ गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है.

105 के मुक्तिबोध

अगर वे जीवित होते तो गजानन माधव मुक्तिबोध की आयु आज 13 नवंबर 2022 को 105 बरस की होती. वे उन थोड़े से आधुनिक मूर्धन्यों में से हैं जिन्हें लंबा और सार्थक उत्तरजीवन मिला है. अपनी मृत्यु के समय सितंबर 1964 में उनकी आयु 47 की भी नहीं हो पाई थी और उनका पहला कविता-संग्रह भी उनके देहावसान के बाद ही प्रकाशित हो पाया.

यह बात थोड़ा चकित करती है कि आज से लगभग छह दशकों पहले उन्होंने जो भारतीय यथार्थ अपनी कविता में विन्यस्त किया था वह अपने ब्यौरों तक में आज का यथार्थ लगता है. उनकी कविता ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ की पंक्तियां हैं:

‘… रात के जहांपनाह/इसीलिए आजकल/दिन के उजाले में भी अंधेरे की साख है/ इसीलिए संस्कृति के मुख पर/मनुष्यों की अस्थियों की राख है/ज़माने के चेहरे पर/ग़रीबों की छातियों की ख़ाक है.’

एक और कविता ‘कहने दो उन्हें जो कहते हैं’ में पंक्तियां हैं:

‘कहीं नहीं, कहीं नहीं,/पूनों की चांदनी यह सही नहीं सही नहीं, केवल मनुष्यहीन वीरान क्षेत्रों में,/निर्जन प्रसारों पर/सिर्फ़ एक आंख से, ‘सफलता’ की आंख से/दुनिया को निहारती फैली है,/पूनों की चांदनी.’

आगे सभी कविता में जो बिंब है वह हमारे समय का विकराल-भयावह बिंब लगता है:

… बैठा है, खड़ा है कोई
पिशाच एक ज़बर्दस्त मरी हुई आत्मा का,
वह तो रखवाला है
घुग्घू के, सियारों के, कुत्तों के स्वार्थों का.

और उस जंगल में, बरगद के महाभीम
भयानक शरीर पर खिली हुई फैली है पूनों की चांदनी
सफलता की, भद्रता की,
श्रेय-प्रेय-सत्यं-शिवं-संस्कृति की
खिलखिलाती पूनों की चांदनी.

अगर कहीं सचमुच तुम
पहुंच ही वहां गए
तो घुग्घू बन जाओगे
सियार बन जाओगे.
आदमी कभी भी फिर
कहीं भी न मिलेगा आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? तुम्हें…

पतंजलि की पांच दवाओं पर लगाई गई रोक का आदेश दो ही दिन बाद वापस: रिपोर्ट

उत्तराखंड आयुर्वेद एवं यूनानी लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने बीते 9 नवंबर को रामदेव की कंपनी पतंजलि की पांच दवाओं के उत्पादन और उनके विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था और कंपनी से एक सप्ताह में जवाब मांगा था, लेकिन शनिवार को उक्त आदेश को एक ‘त्रुटि’ बताते हुए वापस ले लिया गया. The post पतंजलि की पांच दवाओं पर लगाई आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? गई रोक का आदेश दो ही दिन बाद वापस: रिपोर्ट appeared first on The Wire - Hindi.

उत्तराखंड आयुर्वेद एवं यूनानी लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने बीते 9 नवंबर को रामदेव की कंपनी पतंजलि की पांच दवाओं के उत्पादन और उनके विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था और कंपनी से एक सप्ताह में जवाब मांगा था, लेकिन शनिवार को उक्त आदेश को एक ‘त्रुटि’ बताते हुए वापस ले लिया गया.

देहरादून: उत्तराखंड आयुर्वेद एवं यूनानी लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने बुधवार (9 नवंबर) को बाबा रामदेव के पतंजलि उत्पादों का निर्माण करने वाली दिव्य फार्मेसी द्वारा बनाई जाने वाली पांच दवाओं के उत्पादन पर एक नोटिस जारी करके रोक लगा दी थी.

दिव्य फार्मेसी को पांच दवाओं का उत्पादन रोकने के निर्देश देते हुए उसे उनकी मंजूरी लेने के लिए अपनी संशोधित फार्मूलेशन शीट प्रस्तुत करने को कहा गया था.

राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण के संयुक्त निदेशक और राज्य के औषधि नियंत्रक जीसीएन जंगपांगी द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस में दिव्य फार्मेसी से एक सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा गया था.

इसके अलावा, नोटिस में दिव्य फार्मेसी से अपने सभी ‘भ्रामक’ और ‘आपत्तिजनक’ विज्ञापन मीडिया से तत्काल हटाने को कहा गया था, जिसका विरोध जताते हुए पतंजलि ने अगले ही दिन एक बयान जारी करके इस कार्रवाई को ‘आयुर्वेद विरोधी दवा माफिया’ की करतूत बताया था.

लेकिन, अब रोक लगाने के दो ही दिन बाद शनिवार (12 नवंबर) को उत्तराखंड आयुर्वेद एवं यूनानी लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने अपना आदेश वापस ले लिया है और इसे एक ‘त्रुटि’ बताया है.

इस संबंध में हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, औषधि नियामक डॉ. जंगपांगी द्वारा शनिवार को जारी पत्र में कहा गया है, ‘हम इस निदेशालय द्वारा जारी 9 नवंबर के पिछले आदेश में संशोधन करके दवाओं (पांच उत्पादों) के उत्पादन को पहले की तरह जारी रखने की अनुमति देते हैं.’

जंगपांगी ने अखबार से कहा है, ‘हमने पिछला आदेश जल्दबाजी में जारी कर दिया था और वह एक त्रुटि थी. हमने एक ताजा आदेश जारी करके दिव्य फार्मेसी को पांच पांच दवाओं (उत्पादों) का उत्पादन जारी रखने की अनुमति दे दी है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश देने से पहले कंपनी को अपना रुख स्पष्ट करने के लिए समय देना चाहिए था.’

गौरतलब है कि प्राधिकरण द्वारा बुधवार को कंपनी को जारी नोटिस के अनुसार, वह (कंपनी) रोक लगाए गए पांच उत्पादों को ब्लड प्रेशर, शुगर, घेंघा, काला मोतिया और उच्च कोलेस्ट्रॉल की दवाइयों के रूप में प्रचारित करती है. इन पांच उत्पादों के नाम दिव्य मधुग्रित, दिव्य आईग्रिट गोल्ड, दिव्य थायरोग्रिट, दिव्य बीपीग्रिट और दिव्य लिपिडोम हैं.

उक्त नोटिस में कहा गया था कि प्राधिकरण से अपने संशोधित फार्मूलेशन शीट की मंजूरी लेने के बाद ही कंपनी इनका उत्पादन फिर से शुरू कर सकती है.

प्राधिकरण द्वारा गठित एक समिति कंपनी के मूल फार्मूलेशन शीट और उत्पादों के लेबल का परीक्षण कर चुकी थी.

दिव्य फार्मेसी के विरूद्ध उक्त कार्रवाई केरल के एक चिकित्सक केवी बाबू की शिकायत पर की गई थी, जिसमें उन्होंने कंपनी पर औषधि और चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम तथा औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया था.

एनडीटीवी के मुताबिक, दवाओं पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद पतंजलि समूह ने गुरुवार (10 नवंबर) को एक बयान जारी किया था, जिसमें इस कार्रवाई को ‘आयुर्वेद विरोधी दवा माफियाओं की साजिश करार दिया था.’

कंपनी ने प्राधिकरण को चेतावनी देते हुए कहा था, ‘या तो विभाग अपनी गलती को सुधारे और इस साजिश में शामिल व्यक्ति के खिलाफ उचित कार्रवाई करे, अन्यथा इस साजिश के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को दंडित करने के साथ-साथ पतंजलि को हुए संस्थागत नुकसान के मुआवजे के लिए संगठन कानूनी कार्रवाई करेगा.’

प्रतिबंध हटाने के आदेश के बाद पतंजलि के प्रवक्ता एसके तिजारीवाला ने शनिवार को कहा, ‘हम आयुर्वेद को बदनाम करने के इस विवेकहीन कृत्य का संज्ञान लेने और त्रुटि को समय पर ठीक करने के लिए उत्तराखंड सरकार के आभारी हैं.’

कंपनी ने आगे कहा, ‘30 वर्षों के निरंतर प्रयास और शोध के माध्यम से पतंजलि संस्थानों ने दुनिया में पहली बार अनुसंधान और साक्ष्य-आधारित दवा के रूप में आयुर्वेदिक दवाओं के लिए स्वीकृति पैदा की है.’

बयान में कहा गया है, ‘दुर्भाग्यवश उत्तराखंड के आयुर्वेद लाइसेंसिंग प्राधिकरण के कुछ अज्ञानी, असंवेदनशील और अयोग्य अधिकारी आयुर्वेद की पूरी ऋषि परंपरा को कलंकित कर रहे हैं.’

पतंजलि का कहना है, ‘एक अधिकारी की यह अविवेकपूर्ण त्रुटि, (जो) आयुर्वेद की परंपरा और प्रामाणिक शोध पर एक प्रश्न चिह्न लगाती है, आयुर्वेद को पूरी तरह कलंकित करने के लिए की गई है. जान-बूझकर पतंजलि को बदनाम करने का निंदनीय कृत्य किया गया.’

पतंजलि अपनी दवाओं को लेकर पहले भी रहा है विवादों में

इससे पहले जुलाई 2022 में पतंजलि योगपीठ की इकाई दिव्य फार्मेसी कपंनी पर इसके आयुर्वेदिक उत्पादों के भ्रामक विज्ञापन जारी करने के चलते आयुर्वेद एवं यूनानी सेवा (उत्तराखंड) के लाइसेंसिंग अधिकारी ने हरिद्वार के ड्रग इंस्पेक्टर को दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे.

उल्लेखनीय है कि बीते साल रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि ने अपनी दवा ‘कोरोनिल’ के कोविड-19 आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? के इलाज में कारगर होने संबंधी दावे किए थे. साथ ही एलोपैथी और एलोपैथी डॉक्टरों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं, जिसके खिलाफ डॉक्टरों के विभिन्न संघों ने अदालत का रुख किया था.

जुलाई 2022 में रामदेव की कंपनी आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? ने अदालत को बताया था कि वह कोरोनिल के इम्युनिटी बूस्टर, न कि बीमारी का इलाज होने को लेकर सार्वजनिक स्पष्टीकरण जारी करने के लिए तैयार है. हालांकि, अगस्त की सुनवाई में उसने जो स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया, उसमें लिखा था:

‘यह स्पष्ट किया जाता है कि कोरोनिल एक इम्युनिटी बूस्टर होने के अलावा विशेष रूप से श्वांस नली से संबंधित और सभी प्रकार के बुखार के लिए, कोविड-19 के प्रबंधन में एक साक्ष्य-आधारित सहायक है.’

इसमें यह भी कहा गया था, ‘कोरोनिल का परीक्षण कोविड-19 के लक्षण वाले रोगियों पर किया गया, जिसका नतीजा सफल रहा. इसे उस पृष्ठभूमि में देखें कि कोरोनिल को इलाज कहा गया था. हालांकि, बाद में यह स्पष्ट किया गया कि कोरोनिल कोविड-19 के लिए केवल एक पूरक उपाय है.’

अदालत ने इसे ख़ारिज करते हुए कहा था कि यह ‘स्पष्टीकरण के बजाय अपनी पीठ थपथपाने जैसा है.’

इसके आगे की सुनवाइयों में अदालत ने कंपनी को फटकारते हुए कहा था कि वह अपने उत्पाद को कोविड का इलाज बताकर गुमराह कर रही है.

इसके बाद अगस्त 2022 के आखिरी सप्ताह में एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एलोपैथी और एलोपैथिक डॉक्टरों की आलोचना करने के लिए रामदेव से अप्रसन्नता जताते हुए कहा था कि उन्हें डॉक्टरों के लिए अपशब्द बोलने से परहेज करना चाहिए.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार को रामदेव को झूठे दावे और एलोपैथी डॉक्टरों की आलोचना करने से रोकना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि मई 2021 में सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक वीडियो का हवाला देते हुए आईएमए ने कहा था कि रामदेव कह रहे हैं कि ‘एलोपैथी एक स्टुपिड और दिवालिया साइंस है’.

रामदेव ने यह भी कहा था कि एलोपैथी की दवाएं लेने के बाद लाखों लोगों की मौत हो गई. इसके साथ ही आईएमए ने रामदेव पर यह कहने का भी आरोप लगाया था कि भारत के औषधि महानियंत्रक द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए मंजूर की गई रेमडेसिविर, फैबीफ्लू तथा ऐसी अन्य दवाएं कोविड-19 मरीजों का इलाज करने में असफल रही हैं.

एलोपैथी को स्टुपिड और दिवालिया साइंस बताने पर रामदेव के खिलाफ महामारी रोग कानून के तहत कार्रवाई करने की डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) व डॉक्टरों के अन्य संस्थाओं की मांग के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने रामदेव को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि वे अपने शब्द वापस ले लें.

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